SARKARI DISCUSSION:
2025 महाकुंभ
2025 का महाकुंभ प्रयागराज (इलाहाबाद) में आयोजित होगा, जो गंगा, यमुना और अदृश्य सरस्वती नदियों के संगम पर स्थित है। यह आयोजन हिंदू धर्म का सबसे पवित्र और भव्य पर्व है। महाकुंभ हर 12 वर्षों में होता है, और 2025 में इसकी शुरुआत 14 जनवरी मकर संक्रांति के पवित्र स्नान से होगी। यह मेला 22 अप्रैल 2025 तक चलेगा।
विशेष तिथियां (शाही स्नान)
- 14 जनवरी: मकर संक्रांति
- 29 जनवरी: पौष पूर्णिमा
- 10 फरवरी: मौनी अमावस्या (सबसे बड़ा स्नान)
- 19 फरवरी: वसंत पंचमी
- 3 मार्च: माघ पूर्णिमा
- 29 मार्च: राम नवमी
- 8 अप्रैल: चैत्र पूर्णिमा
महत्व
महाकुंभ में संगम में स्नान से मोक्ष की प्राप्ति और पापों का नाश होता है। इसमें संत-महात्माओं, अखाड़ों और भक्तों का बड़ा जमावड़ा होता है। प्रयागराज का कुंभ आयोजन विश्व का सबसे बड़ा धार्मिक और सांस्कृतिक मेला माना जाता है। सरकार मेले के लिए विशेष प्रबंध करेगी, जिनमें अस्थायी शहर, यातायात व्यवस्था, स्वास्थ्य सेवाएं, सुरक्षा और स्वच्छता शामिल हैं। यह महाकुंभ आस्था, आध्यात्म और भारतीय संस्कृति का अद्वितीय प्रतीक है। महाकुंभ भारत की एक अद्वितीय धार्मिक और सांस्कृतिक परंपरा है, जो विश्वभर में प्रसिद्ध है। यह एक ऐसा आयोजन है जिसमें करोड़ों लोग गंगा, यमुना और अदृश्य सरस्वती के संगम पर स्नान करने के लिए एकत्रित होते हैं। महाकुंभ का आयोजन हर 12 वर्षों में होता है और यह हिंदू धर्म के महत्वपूर्ण त्योहारों में से एक है।
महाकुंभ की परंपरा का उल्लेख प्राचीन हिंदू धर्मग्रंथों में मिलता है। इसकी शुरुआत का आधार समुद्र मंथन की कथा है। पौराणिक कथा के अनुसार, देवताओं और दानवों ने अमृत प्राप्त करने के लिए समुद्र मंथन किया। अमृत का कलश (कुंभ) जब निकला तो इसे दानवों से बचाने के लिए देवताओं ने पृथ्वी के चार स्थानों पर रखा। ये स्थान थे - हरिद्वार, प्रयागराज (इलाहाबाद), उज्जैन और नासिक। इन्हीं स्थानों पर अमृत की बूंदें गिरीं, जिससे ये स्थान पवित्र माने गए।
महाकुंभ का आयोजन हर 12 वर्षों में होता है। यह आयोजन ज्योतिषीय गणनाओं पर आधारित होता है। जब बृहस्पति और सूर्य विशेष राशियों में प्रवेश करते हैं, तब महाकुंभ का आयोजन होता है। प्रयागराज में महाकुंभ का आयोजन तब होता है जब सूर्य मकर राशि और बृहस्पति मेष राशि में होते हैं हर 6 वर्षों में अर्धकुंभ का आयोजन होता है।कुंभ के हर आयोजन में विशेष स्नान की तिथियां निर्धारित होती हैं, जिन्हें "शाही स्नान" कहते हैं।
प्रयागराज का महत्व
प्रयागराज महाकुंभ का सबसे महत्वपूर्ण स्थल माना जाता है। प्रयागराज गंगा, यमुना और अदृश्य सरस्वती नदियों के संगम पर स्थित है। इसे त्रिवेणी संगम कहा जाता है और इसे अत्यंत पवित्र माना जाता है। प्राचीन काल में यह क्षेत्र "प्रयाग" कहलाता था और इसे तीर्थों का राजा (तीर्थराज) कहा गया है।मान्यता है कि संगम में स्नान करने से मनुष्य के सभी पाप नष्ट हो जाते हैं और उसे मोक्ष की प्राप्ति होती है।
महाकुंभ क्यों होता है?
महाकुंभ का आयोजन आध्यात्मिकता, मोक्ष और पवित्रता के उद्देश्य से किया जाता है। यह प्रसिद्ध मान्यता है कि कुंभ में स्नान करने से वहां जानेवाले सभी पाप धुल जाते हैं। कुंभ में आमतौर पर संत, महात्मा और साधु-संतों का जमावड़ा रहता है। यह स्थान अध्यात्म और ज्ञान प्राप्ति का केंद्र बन जाता है। कुंभ में विभिन्न जातियों, धर्मों और पृष्ठभूमि के लोग एक साथ स्नान करते हैं, जिससे सामाजिक एकता का संदेश मिलता है। इस मेले का मुख्य आकर्षण अखाड़ों के साधु-संतों का शाही स्नान है। कुंभ मेले में यज्ञ, प्रवचन, धार्मिक प्रवास और कथा-वाचन का आयोजन होता है।
अस्थायी शहर बसता है जिसमें बिजली, पानी, स्वास्थ्य सेवाएं और सुरक्षा का पूरा ध्यान रखते हैं। महाकुंभ एक धार्मिक और आध्यात्मिक आयोजन है, और यह भारतीय संस्कृति और परंपराओं का परिचायक भी है। यूनेस्को ने इसे "मानवता की अमूर्त सांस्कृतिक धरोहर" के रूप में मान्यता दी है। महाकुंभ भारत की समृद्ध सांस्कृतिक और आध्यात्मिक धरोहर का प्रतीक है। यह आयोजन न केवल धार्मिक महत्व रखता है, बल्कि सामाजिक और सांस्कृतिक एकता का भी प्रतीक है। प्रयागराज का महाकुंभ विशेष रूप से महत्वपूर्ण है क्योंकि यह आध्यात्मिकता, पवित्रता और संस्कृति का केंद्र है।
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